
इस ब्लास्ट के बाद भी नेताओं और पुलिस की ओर से बयान आने जारी हैं और दुख व्यक्त करने का सिलसिला भी हमेशा
की तरह ही जारी है. जब भी कोई आतंकी हमला होता है तो नेताओं की तरफ से शोक व्यक्त करने के साथ ही एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है और इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ.
गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि दिल्ली पुलिस को जुलाई में ही एलर्ट भेज दिया गया था जबकि दिल्ली पुलिस का कहना है कि वो एलर्ट तो 15 अगस्त को लेकर था न कि सितंबर के लिए. यानी दोनों ही अपनी जिम्मेदारी दूसरे पर थोपने में लगे हैं.
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी मामले में जांच रिपोर्ट का इंतजार करने की बात कर ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया.
अब सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक आम आदमी सरकारी लापरवाही की वजह से अपनी जान गंवाता रहेगा. कब तक बच्चा अपने माता-पिता को खोता रहेगा और कब तक सुहागिनों की मांग ऐसे सूनी होती रहेगी. आम आदमी द्वारा भरे जाने वाले टैक्स से चलने वाली सरकार को आखिर उसी आम आदमी की फिक्र क्यों नहीं होती.
जब भी धमाके होते हैं तब सरकार और पुलिस की ओर से हर तरह के खोखले दावे किए जाते हैं लेकिन उसके बाद आम आदमी को मिलता क्या है, एक और बम धमाका या एक और आतंकी हमला. आखिर ये नेता कब सुधरेंगे और अपनी जिम्मेदारी समझेंगे.
जनता में इन नेताओं के प्रति गुस्से का पता इसी बात से चलता है कि जब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी धमाकों में घायल लोगों को देखने आरएमएल अस्पताल पहुंचे तो घायलों के परिजनों ने राहुल के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. यही नहीं जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद घायलों का हाल जानने अस्पताल पहुंचे तो उन्हें भी लोगों ने घेर लिया. जनता ठोस कार्रवाई चाहती है खोखले वादे नहीं.
इस हमले में 11 लोगों की जान चली गई है और 91 घायल हैं, बावजूद इसके जनता सरकार से किसी ठोस कदम की अपेक्षा कर रही है, सहानुभूति और झूठे वादों की नहीं.
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